मुद्रास्फीति क्या है मुद्रास्फीति के कारण एवं प्रभाव (Inflation rate in India hindi )


आज INFLATION यानि #मुद्रास्फीति 5.3 % तक पहुंच चुकी है. मुद्रास्फीति के कारण और परिणाम देश जानना चाहता है , लेकिन जवाब नहीं मिलते .माध्यम वर्ग 2.5 % से 3 % तक झेल सकता है और किसान मजदुर केवल 2% तक मुद्रास्फीति झेल सकते है. इससे ऊपर #मुद्रास्फीति का होना #माध्यम_वर्ग और #किसान मजदूरों के लिए घातक है. वही कॉर्पोरेट मुद्रास्फीति के लाभ से फल फुल रहा है.
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मुद्रास्फीति का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

मुद्रास्फीति का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है इसलिए Out of control inflation par RBI भी सरकार को सांकेतिक यानि दबी जुबान से पत्र लिखने की फॉर्मेलिटी पूरी करता रहा है. गवर्नर उर्जित पटेल के नेतृत्व में (RBI) 4% पर मुद्रास्फीति को कण्ट्रोल करने के लक्ष्य बने गए , ऐसे ही कारण थे की उर्जित पटेल आधी रात को इस्तीफा देते है. शायद वो सरकार और कॉर्पोरेट से समझौता न कर सके. भारत में मुद्रास्फीति के कारण वो अच्छे से जानते है, उन्होंने 1990 और 1995 के बीच अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ अमेरिका, भारत, बहामास और म्यांमार डेस्क को कवर करने के लिए काम किया है. इसलिए उनका अच्छा अनुभव था इसे कण्ट्रोल करने के लिए लेकिन कॉर्पोरेट नहीं चाहता था की ऐसा हो. आखिर जनता का फायदा कोई क्यों चाहेगा ?

मुद्रास्फीति का किसान पर प्रभाव

मुद्रास्फीति किसानों के लिए नकदी प्रवाह की समस्या भी पैदा करती है और इनपुट कॉस्ट पर लोस्स देती है लेकिन आउटपुट कॉस्ट पर कोई मुनाफा नहीं होता. क्योकि इन्फ्लेशन ज्यादा है. 2000 का नॉट किसान के लिए घातक साबित हुआ है यह भारत से किसान को गायब कर देगा और उसे मजदुर कि श्रेणी में ले जायेगा क्योकि कॉर्पोरेट को किसान चाहिए ही नहीं उसे मजदुर चाहिए . वो इस योजना पर काम कर रहे है.

यह उनके आर्थिक जीवन को असंतुलित कर रहा है. सीधे टूर पर कहा जाये तो जनता का गाला होता जा रहा है. इन्फ्लेशन का बढ़ना कॉर्पोरेट के लिए तो सही है क्योकि इससे उनकी आय 1600 % तक बढ़ चुकी है. घटिया शिक्षा व्यवस्था और धरातल पर इन विषयो की जानकारी के आभाव में पूरा समाज पीस रहा है और पूंजीवाद फल फुल रहा है, नेता मंत्री अंधी कमाई करते है और जनता को अपने हाल पर रहना पड़ता है.

किसान नेताओ के पास कोई विकल्प और सोच नहीं होती इसलिए धरातल पर आम किसान न तोकभी जागरूक होते है और ना इस अप्रत्यक्ष मार से बच पाते है. इसलिए कृषि आज घाटे का सौदा बना हुआ है लेकिन कृषि उद्योग इसका लाभ उठाकर मोटी कमाई कर रहे है.

किसान की न्यूनतम आय भी स्थिर नहीं है और कृषि उधोग अधिकतम आय से भी 2200 % तक के मुनाफे पर पहुंच चुके है. जाहिर सी बात है कि कृषि भूमि जल्द ही इनके हाथो में जाने वाली है. इसके लिए लैंड बैंक्स कि स्थापना भी हो चुकी है.

जैसे-जैसे मुद्रास्फीति बढ़ती है, किसानों द्वारा विभिन्न आदानों के लिए भुगतान की गई कीमतें उनके उत्पादों के लिए प्राप्त कीमतों की तुलना में तेजी से बढ़ती हैं, जिससे मुद्रास्फीति की दर बढ़ने पर किसानों के लिए व्यापार की शर्तें बिगड़ जाती हैं.

समाधान के उपाय


इससे बचने का एक ही उपाय है लेकिन उसके लिए धरातल पर कोई जागरूकता नहीं है. किसान और ग्रामीण आधारित मनुफेक्चरिंग इकाइयां स्थापित हो और उन्हें बेचने के प्लेटफार्म तैयार हो . इससे दो काम होंगे मुद्रास्फीति कंट्रोल होगी माध्यम वर्ग कि जान को रहत की साँस मिलेगी .

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